Dussehra
This post has been written using Google's transliteration tool. Please excuse the minor spelling mistakes. आज दशहरा है और मुझे बचपन का रावण याद आ रहा है. समय के साथ यादें बदलती और महत्वपूर्ण होती जाती है. कुछ यादों को हम बदलते हैं , कुछ हमें बदल देती हैं. दशहरे के साथ मेरी एक ऐसी याद जुड़ी है जो न मैंने बदली है और ना ही इतनी महत्वपूर्ण है. लेकिन, आज इस याद का एक नया रूप मेरे सामने आया. यह बात है 1990 की. मैं कमला नगर में अपनी नानी के साथ रावण देखने गया था. रावण देखने का उत्साह तो था ही, साथ में मेले वाली छोटी दुकानों से तलवार, तीर धनुष , मुखौटे और गरमा गरम समोसे चाट खाने का भी काफी चाव था. दशहरे की शाम मैदान में काफी भीड़ होती है, रावण के पास पहुंचना मुश्किल होता है. सौभाग्य से मंडली के एक कार्यकर्ता हमारे घर में किरायदार थे और रावण को पास से देखने की मेरी इक्षा के पूरक भी. नानी रावण को पसंद नहीं करती थी, कौन करता है, लेकिन मेरे लिए रावण सिर्फ अधर्म और बुराई का प्रतीक नहीं था. सात साल की उम्र में बुराई और अ...